Bhagwan Mahaveer Vani साधु – श्रावक के व्रत नियम
जैन धर्म विश्व प्रसिद्ध धर्म है. इसके २४ तीर्थंकर हुए हैं. तीर्थंकर को जैन धर्म का प्रवर्तक माना जाता है. २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर हुए हैं. उनकी वाणी को Bhagwan Mahaveer Vani के तौर पर बोला जाता है. यहां पर Bhagwan Mahaveer Vani के सूत्र प्रस्तुत किए जा रहे हैं। यह सूत्र जैन आगमों से लिए गए हैं। इन सूत्रों से जीवन उन्नत बनेगा और स्वाध्याय से कर्म निर्जरा भी होगी ।
- व्रत – नियम लेना अर्थात अपनी सबसे प्रिय भोग-उपभोग की वस्तु का त्याग करना अर्थात उसे सोच समझकर स्वइच्छा से त्याग करना।
- चाहें साधु हो या श्रावक सबको अपने नियमों के प्रति सदैव जागरूक और सतर्क रहना चाहिए। यही भगवान की आज्ञा है
- श्रावक के चाहे एक छोटे-से छोटा नियम नवकारसी का ही हो या श्रावक के बारह व्रत पालन का हो या यावज्जीवन तीन करण तीन योग से सामायिक अर्थात दीक्षा (संयम) का हो।
Bhagwan Mahaveer Vani
- वह सबकुछ अपनी क्षमता के अनुसार स्वीकार करना चाहिए और जितने समय (काल) के लिए नियम लिया है उसे उतने काल तक मन-वचन-काया के शुभ योगों से पालना चाहिए।
- कोई भी नियम सोच समझकर अपनी इच्छा अनुसार ही लेना चाहिए, ताकि नियम लेने के बाद पछताना नहीं पड़े।
- जितने धार्मिक नियम लिए जाते है वे आत्म उत्थान के लिए ही लिए जाते है।
- अगर ईमानदारी से नियम का पालन करें तो छोटे से छोटा नियम भी देवलोक में पहूंचा देता है और तीन करण तीन योग से शुद्ध सामायिक करें तो मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है।
- सिर्फ नियम लेने मात्र से अथवा वस्त्र परिवर्तन से मोक्ष नहीं मिलता है। वस्त्र के साथ-साथ हृदय परिवर्तन ज्यादा जरूरी है। वस्त्र परिवर्तन करके भी यदि मन संसार में लगा रहा तो वह साधु नहीं होकर श्रावक ही है।
- भगवान ने ठाणांग सूत्र के दसवें ठाणे में दस प्रकार का मुंडन बताया है। पांच इंद्रियों के पांच मुंडन, चार कषायों के चार मुंडन। इन नौं का मुंडन करने के बाद दसवां सिर मुंडन बताया है।
- जब तक नौं प्रकार के इंद्रिय और कषाय का मुंडन नहीं होता है तब तक साधु-साध्वी को सिर मुंडाने से कोई लाभ नहीं होता है।
- ‼️ संयम तो कषाय और इंद्रियों के दमन के लिए ही लिया जाता है और संयम लेकर इन पर विजय प्राप्त नहीं की तो सिर मुंडाने का कोई लाभ नहीं है। वह साधु भी गृहस्थ के समान ही होता है।
यही भगवान की आज्ञा है। जो इसका पालन करते है वे मोक्षमार्ग पर आगे बढ़ते हैं।

मेरे लिखने में किसी प्रकार से अविनय आशातना हुई हो तो मुझे क्षमा करें।
जय जिनेन्द्र सा।
रमेश मेहता जैन सांगली।
7888183289.