Wednesday, April 23, 2025
मोटिवेशनल

Success tips in Hindi सफलता के सूत्र – जितेन्द्र कोठारी

हर विकासशील प्राणी अपने नन्हे – नन्हे पांवों से विकास [ Success ] की दूरियों को नापना चाहता है , वहां तक पहुंचना चाहता है । वह विकास के अनंत आकाश को अपनी बांहों में समेटना चाहता है । वह चाहता है — छलांग लगाकर विकास के उत्तुंग शिखर पर चढ़ना । जो भी व्यक्ति इस संसार में जन्मा , उसने किसी – न – किसी रूप में विकास की दिशा की ओर प्रस्थान करने का प्रयत्न किया है । समाज में रहने वाला हर प्राणी विकास की ऊंचाइयों को छूना चाहता है । पर , आज का अहं प्रश्न है कि क्या हर व्यक्ति विकास की अनगिन रेखाओं में अपनी तूलिका से रंग भर सकता है ? क्या वह विकास के उस छोर तक पहुंच सकता है , जहां पहुंच जाने पर विकास के लिए कोई अवकाश न रहे ?

 पहुंचना न पहुंचना यह बात गौण है , किंतु पुरुषार्थ करना व्यक्ति का अपना कर्तव्य है । विकास की अनेकानेक संभावनाओं से कभी इनकार नहीं किया जा सकता । हर व्यक्ति का उस ओर चलना एक लक्ष्य है । कौन कहां तक पहुंचता है यह दूसरी बात है । मनोविज्ञान में मनुष्य की अनेक मौलिक मनोवृत्तियों का उल्लेख है । उनमें एक मौलिक मनोवृत्ति है — कुछ करने अथवा कुछ होने की महत्त्वाकांक्षा । मनुष्य के पास शक्तिशाली नाड़ीतंत्र है , ग्रंथितंत्र है , मस्तिष्क है , पुरुषार्थ करने की क्षमता है और चिंतन – मनन करने की शक्ति है । ये सब – कुछ हैं तभी उसमें आगे बढ़ने का मनोभाव है ।

Success tips सफलता के स्वर्णिम सूत्र

यदि मनुष्य सामाजिक प्राणी नहीं होता तो संभवतः उसके पास ये सब होते हुए भी वह विकास की भूमिका को आगे नहीं बढ़ा पाता । पशु न तो सामाजिक प्राणी है और न ही उसके पास ग्रंथितंत्र , न शक्तिशाली नाड़ीतंत्र है , न उसमें चिंतन – मनन की शक्ति है । इसलिए वह विकास करने की सोच नहीं रखता है और न ही वह आगे बढ़ सकता है । आदिम युग में भी पशु भार ढोता था और आज भी वह भार ढोता आ रहा है । जैसा पहले था , आज भी वही लक्षण उसमें विद्यमान है ।
 फिर भी यह तो स्वीकार करना ही होगा कि यदि व्यक्ति को अपने – आप में कुछ बनना है , विकास की ऊंचाइयों को छूना है तो उसे अपने ही पैरों से चलना होगा । स्वयं के प्रकाश से अपने – आप को आलोकित करना होगा और फल – आस्वादन के लिए उसे स्वयं ही अभिक्रम करना होगा । ‘ इनके लिए कुछेक आलंबनों की निश्चय ही आवश्यकता है । [ key to success in life ] इन आलंबनों के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति अपनी विकास यात्रा को सफल बना सकता है । [ success tips for students ]  ये आलंबन निम्नांकित हो सकते हैं –

मानसिक चित्र का निर्माण

विकास [ Success] के सोपान पर पादन्यास करने के लिए अति आवश्यक है — किसी मानसिक चित्र का निर्माण । विकास की अनेक दिशाएं हैं । हर दिशा में एक ही समय सब ओर जाया जा सके , यह सर्वथा असंभव है । सर्वप्रथम व्यक्ति जो – कुछ बनना चाहता है , या जो – कुछ होना चाहता है वह मन – ही – मन उसके एक चित्र का निर्माण करे । कल्पनाओं के यान पर चढ़कर कोई व्यक्ति अपनी कार्यसिद्धि नहीं कर सकता । उसे यथार्थता के धरातल पर तो आना ही होता है , पर जब तक हम कल्पना ही नहीं करेंगे तो यथार्थ में बदलने की बात ही कैसे होगी । कई बार कुछ किशोर आपस में बतियाते हुए एक – दूसरे से पूछते हैं कि किसी का अमेरिका जाने का विचार है , उसमें कितना खर्च होगा ? कोई कहता है कि दो लाख रुपए तो कोई कहता है पांच लाख रुपए ।
कल्पना मात्र से कोई अमेरिका नहीं पहुंच सकता । जब तक कल्पना को मानसिक चित्र का रूप नहीं दिया जाता तब तक वह साकार नहीं हो सकती । कल्पना के अनेक आयाम हो सकते हैं । कोई व्यक्ति बौद्धिक विकास करने का इच्छुक है , तो कोई आध्यात्मिक विकास करने के लिए अग्रसर होना चाहता है । कोई अपने शक्तिबल को बढ़ाना चाहता है , तो कोई सामाजिक क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहता है । विकास के लिए सर्वप्रथम किसी एक बिंदु का निर्धारण करना आवश्यक है । जो आप बनना चाहते हैं — उस का आप एक मानसिक चित्र बना लें । वह मानसिक चित्र ही व्यक्ति को लक्ष्योन्मुखी बनाता है । वह चित्र इतना अधिक स्पष्ट और साफ – साफ हो कि उसमें कहीं किसी प्रकार के कोई संदेह और संशय का अवकाश न हो और भावी का प्रतिबिंब उसमें नजर आए । success tips

ज्ञान

टेढ़ी – मेढ़ी रेखाओं के बीच छिपे किसी मानसिक चित्र में रंग भरना और उसे उभारना अति कठिन होता है । उसके लिए ज्ञान भी एक महत्त्वपूर्ण आलंबन बनता है । व्यक्ति को गंतव्य स्थल तक पहुंचाने के लिए ज्ञान ही मार्गदर्शक बनता है । ज्ञान वह दीपक है जो व्यक्ति को सही मार्ग दिखाता है और उसे इधर – उधर भटकने से रोकता है । ज्ञान के अभाव में न जाने लोग अपना मार्ग भूलकर कहां – से – कहां भटक जाते हैं । ‘ मैं कहां हूं ‘ — इसका ज्ञान होना जितना आवश्यक है , उससे अधिक आवश्यक है कि ‘ मुझे कहां होना है ? ‘ ज्ञान का फल है — एकाग्रता का विकास करना , अपने – आप को पहचानना और अपने विवेक को जागृत करना और सबसे बड़ा फल है — मूर्च्छित चेतना को जगाकर लक्ष्योन्मुखी होना ।
सही दिशा में चलने के लिए ज्ञान एक सशक्त साधन है । इस संसार में जितने भी ज्ञानी हुए हैं — उन्होंने अपनी विकास यात्रा का प्रारंभ ज्ञान के आलोक में किया । विकास Success का महत्त्वपूर्ण सूत्र है –आगे बढ़ो , पर ज्ञान के साथ बढ़ो । वह विकास विकास नहीं होता जहां ज्ञान का प्रकाश तिरोहित हो जाता है । ज्ञान और विकास – दोनों समानांतर रेखाओं की भांति साथ – साथ चलते हैं । इसलिए लक्ष्य तक पहुंचने के लिए ज्ञान का आलंबन एक महत्त्वपूर्ण साधन बनता है ।

आस्था

आस्था जीवन की एक गहरी नींव है । उस नींव पर ही वायु के जीवन विकास का भव्य प्रासाद खड़ा होता है । आस्था के अभाव में यदि जीवन का प्रासाद खड़ा भी किया जाए तो वह अधिक दिन तक टिक नहीं सकता । मनुष्य ने विकास के लिए एक मानसिक चित्र भी बना लिया । उसे ज्ञान का आलंबन भी मिल गया , पर आस्था का निर्माण नहीं हो पाया तो उसका करा – कराया सब धूमिल हो जाएगा । जैसे थपेड़ों से बालू के कण एक जगह स्थिर नहीं रह सकते उसी प्रकार आस्था के अभाव में विकास की यात्रा भी डावांडोल हो जाती है । वायु का एक झोंका आता है , अस्थिर पदार्थ उसके सहगामी हो जाते हैं । स्थिर पदार्थ कभी उसकी राह का अनुगमन नहीं करते । आस्था का तात्पर्य ही है — स्थिरता का विकास , सुदृढ़ कवच का निर्माण ।
आस्था किसके प्रति हो ? यह एक प्रश्न है । इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि सर्वप्रथम आस्था अपने प्रति हो , अपने लक्ष्य के प्रति हो । बाद में वह आस्था किसी के प्रति भी हो सकती है । फिर वह चाहे मंत्र हो , तंत्र हो , स्वयं का गुरु हो या शिष्य हो । आस्था निर्माण में किसी भी प्रकार का कहीं कोई संदेह या विपर्यय का अवकाश नहीं रहना चाहिए । आस्था में सदा समर्पण का भाव छलकता है । जहां समर्पण होता है वहां अनास्था निश्छिद्र हो जाती है । यदि कहीं ऐसा नहीं होता है , तो वहां संशय के छिद्रों से कहीं- न – कहीं से पानी टपक पड़ता है. आस्था का भाव विकास यात्रा को और अधिक गति देता है ।
मन – ही – मन जिस चित्र का निर्माण किया , वह सपना आस्था के अभाव में कैसे सफल हो सकता है ? दृढ़ आस्था ऐसी लक्ष्मण रेखा है जिसको लांघकर अनास्था का प्रवेश नहीं हो सकता । आस्था के आधार पर अमंत्र भी मंत्र बन जाता है और धूलिकण औषध का काम करते हैं । success tips for life

पुनः – पुनः अभ्यास

 ‘ करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान । ‘ कवि की यह उक्ति संस्कार निर्माण की एक सुंदर प्रक्रिया है । पुनः – पुनः किया हुआ अभ्यास कभी निष्फल नहीं होता । जो कार्य एक बार करने से सिद्ध नहीं हो तो वह संभवतः दो बार , तीन बार , अथवा सहस्र बार करने से सिद्ध हो सकता है । अभ्यास न करने का एक मुख्य बाधक तत्त्व है — चित्त की चंचलता । सामान्यतः मनुष्य की नैसर्गिक मनोवृत्ति है कि वह किसी एक कार्यबिंदु पर केंद्रित होना नहीं जानता । कोई एक कार्य वह प्रारंभ करता है , किंतु दूसरे ही क्षण चित्त विक्षेप के कारण अपने कार्य को बदल लेता है , अन्यान्य तो अनेक कार्यों को करने में तत्पर हो जाता है । मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाली विचार तरंगें मनुष्य के दिल – दिमाग और कार्य को भी बदल देती हैं । इसलिए वह किसी एक कार्य पर स्थिर नहीं रह पाता । कार्य की सिद्धि के लिए संकल्प के साथ पुनः – पुनः अभ्यास करने की आवश्यकता है ।
अभ्यास न करने का एक अन्य कारण है — निराशा का भाव अथवा निषेधात्मक भाव । जब मन में निराशा टपकती है तो वहां कार्य करने की आशा भी क्षीण हो जाती है । बीज बोने से पहले ही मनुष्य उसके फल में संदेह करने लग जाता है । एक कदम चला नहीं , उससे पहले ही मंजिल न पाने की निराशा व्यक्ति को हतोत्साहित कर देती है । इसलिए नीतिकारों ने कहा — ‘ तुम्हें केवल कर्म करने का अधिकार है , उसके फल का हेतु तुम नहीं हो । ‘ फल का अनुबंध कार्य के साथ जुड़ा हुआ है । यदि कार्य की सिद्धि होती है तो फल स्वतः ही मनुष्य को मिल जाएगा । अभ्यास के लिए पुनरावर्तन की आवश्यकता है । जब बार – बार किसी कार्य का अभ्यास होता है तो वहां निर्माण होता है — एक संस्कार का ।
अपने – आप में कुछ बनने के लिए या कुछ होने से पहले व्यक्ति एक शब्दावली को तैयार करे । कायोत्सर्ग की मुद्रा में दृढ़निष्ठा और आत्मविश्वास के साथ पुनः – पुनः उसका उच्चारण करे और अनुभव करे कि मेरे भीतर अनंत शक्ति का स्रोत बह रहा है । मैं उसमें अभिस्नात होकर अपनी शक्ति का संवर्धन कर रहा हूं । मैं जो – कुछ होना चाहता हूं ‘ उसे साक्षात् यथार्थता के धरातल पर अवतरित कर रहा हूं ।

पुरुषार्थ 

पुरुषार्थ एक ऐसी ऊर्जा है जिसके द्वारा मनुष्य सदैव गतिशील बना रहता है । पुरुषार्थ के द्वारा व्यक्ति ने क्या कुछ नहीं किया ? पुरुषार्थ की छेनी से उसने बड़े – बड़े पहाड़ों को विदारित किया , अनगढ़ पत्थर को तराश कर उसे सुंदर प्रभावी प्रतिमा का आकार दे दिया और पुरुषार्थ के दीवट पर अपने भाग्य के दीपक को प्रज्वलित किया । पुरुषार्थ की शक्ति प्रत्येक मनुष्य में निहित है , पर उसको अपने काम में लेने वाले विरल हैं । जिसमें पुरुषार्थ का अभाव होता है – उसकी मनुष्य तो क्या , देवता भी सहायता नहीं करते । शक्तिहीन व्यक्ति दूसरों के द्वारा हमेशा प्रताड़ित होता है । निर्बल मानकर उसे सदा पैरों के तले रौंदा जाता है और अपने स्वार्थ के लिए उसका शोषण किया जाता है । कौन व्यक्ति ऐसा होगा जिसने बिना पुरुषार्थ के अपने लक्ष्य को पाया हो । वास्तव में सफलता का राज पुरुषार्थ में ही छिपा हुआ है । जिसने यत्किंचित् पुरुषार्थ किया , उसने बहुत – कुछ पाया और जो बिना पुरुषार्थ के रहा -वह सदा अभागा का अभागा ही रहा ।
पुरुषार्थ का नियोजन ध्वंसात्मक कार्यों में भी हो सकता है और निर्माणात्मक कार्यों में भी । यदि मनुष्य विकास की ओर बढ़ना चाहता है , ऊंचाइयों को छूना चाहता है तो उसका पुरुषार्थ भी रचनात्मक कार्यों में नियोजित होगा । मनुष्य अनंत शक्ति का पुतला है । उसे अपनी शक्ति को जगाने की आवश्यकता है । यदि व्यक्ति अप्रमत्तता का जरा भी विकास कर लेता है तो पुरुषार्थ निश्चित ही उसका सहचारी बनकर उसकी उपासना करेगा । पुरुषार्थ पर व्यक्ति का अपना निजी अधिकार भी है । वह उसका कहीं और कभी भी प्रयोग कर सकता है । वह कभी निष्फल नहीं हो सकता । जरूरत है मनुष्य को जागरूक बनने की तथा अपने भीतर की ओर झांकने की । वही पुरुषार्थ व्यक्ति को सिद्धि तक ले जाएगा , सफलता Success की दस्तक देगा । अतः विकास के नव – नव आयामों के उद्घाटन के लिए तथा विकासोन्मुखी बनने के लिए व्यक्ति अपने पुरुषार्थ की लौ को होत्राग्नि की भांति कभी बुझने न दे ।

धृति

किसी चिंतक ने कहा — ‘ तब तक अविराम गति से चलते रहो जब तक मंजिल न आ जाए और तब तक जलते रहो जब तक तिमिर का नामोनिशान न मिट जाए । ‘ आज के मनुष्य में इतनी धृति कहां है ? सफलता की सिद्धि के लिए धृति की आवश्यकता होती है । ऐसा कभी नहीं होता कि आज ही बीज का वपन किया और चंद क्षणों में ही वह पल्लवित , पुष्पित और फलित हो जाए । आज ही किसी कार्य को प्रारंभ किया और उसकी निष्पत्ति भी आज ही हाथ लग जाए । यह कोई चमत्कार नहीं हो सकता और न ही कोई वह चक्रवर्ती की रिद्धि – सिद्धि हो सकती है , जैसा चाहा वैसा हो गया । फल प्राप्ति के लिए व्यक्ति को धैर्यपूर्वक कुछ प्रतीक्षा करनी होती है । यद्यपि प्रतीक्षा की घड़ियां मनुष्य के लिए असह्य होती हैं । वह हर कार्य की सिद्धि का वरण जल्दी – से – जल्दी करना चाहता है ।
धृति मन का नियमन करने वाली ऐसी शक्ति है जो व्यक्ति को सफलता [ Success ] के बिंदु तक पहुंचाती है । धृति के अभाव में मनुष्य क्या – कुछ नहीं करता ? वह किसी एक कार्य को प्रारंभ करता है , वह पूरा भी नहीं होता — उससे पूर्व ही वह किसी दूसरे कार्य को प्रारंभ कर देता है । इस प्रकार एक साथ वह कितने कार्य प्रारंभ कर देता है । पर सफलता उसे कहीं से नहीं मिलती । यह अधीरता ही उसकी निराशा का कारण बनती है , असंतुलन का कारण बनती है । धृतिमान व्यक्तियों ने पुनः पुनः इसी बात को दोहराया कि तब तक प्रयत्न करते रहो जब तक चलनी का पानी बर्फ न हो जाए , साधन सिद्धि न बन जाए ।
सफलता Success के शिखर को छूने के लिए मनुष्य को सघन प्रयत्न करने की आवश्यकता है । इसके लिए व्यक्ति व्यक्ति को प्रतिकूलताओं से मुकाबला करना होगा , संघर्षों को झेलना होगा और अपने सब्र के बांध को तब तक स्थिर करना होगा जब तक उसे लक्ष्य प्राप्त न हो जाए । वह व्यक्ति दुनिया का महान व्यक्ति बन गया जिसने धैर्य का आलंबन लेकर ऊपर चढ़ने का प्रयत्न किया । अतः धृति सफलता का एक महान सूत्र है ।

आत्मविश्वास 

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 व्यवहार जगत का यह आश्चर्य है कि व्यक्ति दूसरों पर अधिक विश्वास करता है , स्वयं पर विश्वास कम होता है । जीवन में ऐसे अनेक अवसर आते हैं — जब व्यक्ति अपने आत्मविश्वास की कमी के कारण अपने विकास की गति को मंद कर लेता है । मैं जो कार्य कर रहा हूं , उसमें मुझे सफलता Success मिलेगी या नहीं , यह संशय ही व्यक्ति की असफलता का सबसे बड़ा कारण बनता है । कार्य की संपूर्णता से पूर्व ही किसी अनिष्ट की संभावना करना आत्मविश्वास की कमी को दर्शाता है । जब स्वयं के विश्वास का दीपक स्वयं को ही आलोकित नहीं करता तो वह दूसरों को कैसे आलोकित कर पाएगा ?
मैं मर जाऊंगा , किंतु कार्यसिद्धि के अपने प्रयासों को नहीं छोडूंगा — यह भीष्म प्रतिज्ञा ही आत्मविश्वास को उजागर कर सकती है । एक युवक नौसेना में भर्ती होने वाला था । उसका इंटरव्यू लेते हुए सेना के अधिकारी ने पूछा – युवक ! तुम समुद्र में जहाज चला रहे हो । यदि उस समय समुद्र के बीच तूफान आ जाए तो तुम क्या करोगे ? तत्काल उसने उत्तर दिया – सर ! मैं लंगर डाल दूंगा । पुनः अधिकारी ने पूछा – यदि फिर तूफान आ जाए तो ? पुनः युवक का वही उत्तर था — सर ! मैं लंगर डाल दूंगा । जितनी बार भी युवक से वह प्रश्न पूछा गया अधिकारी को उसका वही घड़ा – घड़ाया उत्तर मिला । अधिकारी ने हंसते हुए कहा — युवक ! इतने लंगर तुम कहां से लाओगे ? युवक ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा महाशय ! जहां से तूफान आएंगे , लंगर भी वहीं से आ जाएंगे । युवक का वह आत्मविश्वास अधिकारी को आश्चर्य में डालने वाला था । जीवन की हर समस्या का समाधान आत्मविश्वास की भूमिका में ही खोजा जा सकता है । आत्मविश्वास की लौ से ही पुरुषार्थ का दीपक जला करता है । जो व्यक्ति सफलता [Success] की सिद्धि तक पहुंचना चाहता है , उसे संकल्प शक्ति के द्वारा आत्मविश्वास को जगाना होगा । अपने आत्मविश्वास को परिपुष्ट करने के लिए संकल्प का पुनः पुनः अभ्यास करना होगा । जिस व्यक्ति का आत्मविश्वास पुष्ट , परिपुष्ट होता है वही व्यक्ति सफलता Success की सिद्धि तक पहुंच सकता है ।

स्वदर्शन

दूसरों को देखना व्यक्ति का चिर स्वभाव है । वह दूसरों की कमियों और दुर्बलताओं की ओर सदैव दृष्टिपात करता रहता है । स्वयं की ओर कभी नहीं देखता । जहां स्वयं की कमियों और दुर्बलताओं को देखने का प्रश्न आता है , वहां व्यक्ति अपने – आप में मौन हो जाता है । अपने ही दर्पण में अपने – आप को देखना , अपने जीवन की पोथी को अपने – आप पढ़ना ही सफलता Success को प्राप्त करने का अमोघ साधन है । मनुष्य के भीतर अच्छाई और बुराई दोनों विद्यमान हैं । दूसरा व्यक्ति हमें किस दृष्टि से देखता है , हमारा अंकन किस प्रकार करता है , यह पैरामीटर वास्तव में यथार्थता का सूचक नहीं हो सकता । कभी – कभी वह गलत भी सिद्ध हो जाता है । हम कैसे हैं ? इसका मानदंड हम स्वयं ही बन सकते हैं । इसलिए अच्छा है कि व्यक्ति स्वयं के द्वारा स्वयं का निरीक्षण करे और अपनी कमियों , दुर्बलताओं का अंकन करे । कमियों और दुर्बलताओं को देखने का तात्पर्य यही है कि उन – उन कमियों और दुर्बलताओं के निराकरण का साधन खोजना ।
एक बार अकबर ने बीरबल से पूछा — ‘ तुम इतने बुद्धिमान कैसे बने ? ‘ बीरबल ने बड़ा ही मार्मिक उत्तर देते हुए कहा — ‘ जहांपनाह ! संसार में मूर्खता के जितने कार्य थे उन कार्यों को मैं छोड़ता गया । ‘ स्वयं का निरीक्षण स्वयं की दुर्बलताओं पर सीधा प्रहार करता है और उसमें रूपांतरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है । जब तक स्वदर्शन नहीं होगा तब तक परमात्म – दर्शन भी नहीं हो सकता । इसलिए आत्मदर्शन एक ऐसी प्रक्रिया है जो दुर्बलताओं के सघन कुहासे को दूर करती है और सफलता के बिंदु तक पहुंचाती है । इसलिए आत्मदर्शन भी सफलता success का एक सशक्त आलंबन है ।
success tips for life - जितेन्द्र कोठारी
 ये जीवन – विकास के कुछेक ऐसे बिंदु हैं जिनको मिलाने पर व्यक्तित्व – विकास की एक रूपरेखा निर्मित की जा सकती है । यदि ऐसा होता है तो उसकी फलश्रुति होगी–
  • स्वयं के द्वारा स्वयं का प्रस्थान ।
  • लक्ष्योन्मुखी बनने का अभियान ।। 
  • अपने भाग्य का अपने हाथों निर्माण । 
success tips for life by Jitendra Kothari
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