Wednesday, April 23, 2025
मोटिवेशनल

Beauty Tips सुंदर दिखना है तो इन सूत्रों को जीवन में उतारे

Beauty Tips by Jitendra Kothari 

इस आधुनिक युग के आधुनिक वातावरण में पलने वाला हर व्यक्ति अपने – आप को सुंदर दिखाना चाहता है । अपने रूप की तस्वीर वह किन्हीं दूसरों की आंखों में बसाना चाहता है और चाहता है कि हर कोई उसके रूप पर फिदा हो जाए । उसका आकर्षण सबके मन में समा जाए और हर कोई सम्मोहित हो जाए – उसके रूप – लावण्य पर । न जाने इसके लिए मनुष्य अपनी ओर से कितना प्रयत्न करता है । अनेक शहरों में मनुष्य को सुंदर बनाने के लिए अनेक ‘ ब्यूटी पार्लर ‘ खुले हुए हैं ।

समय – समय पर बहुत-सी पत्र-पत्रिकाओं में इस संबंध में अनेक ‘टिप्स’ भी छपते हैं । मनुष्य को अपना ‘ मेकअप करने के लिए अनेक प्रकार की सामग्री भी दूकानों में उपलब्ध होती है । अनेक विज्ञापन भी दिखाए जाते हैं । इसलिए आज की युवा पीढ़ी का सौंदर्य प्रसाधन के प्रति निरंतर आकर्षण बढ़ रहा है । सौंदर्य के जिन साधनों का यह पीढ़ी भरपूर उपयोग करती है , वे साधन क्या हैं ? कैसे हैं ? और कितने लाभप्रद हैं ? इसका विश्लेषण किए बिना मनुष्य अपने शरीर को सजाने – संवारने मात्र में इनका उपयोग करता है ।

सौन्दर्य की पहचान

वस्तुतः सौंदर्य चमड़ी में नहीं है । वह व्यक्ति के आचार , व्यवहार और मस्तिष्क में है , पर व्यक्ति ने त्वचा सौंदर्य को ही सब – कुछ मान लिया । वह जितना ध्यान अपने शारीरिक सौंदर्य पर देता है , शायद उतना ध्यान अपने आंतरिक सौंदर्य पर नहीं देता । महात्मा गांधी का ही उदाहरण लें । उनका शरीर कृश तथा हड्डियों का ढांचा मात्र था । उनका बाहरी रंग – रूप दूसरों के लिए उतना आकर्षक भी नहीं था । पर उनका आचार – विचार , भावतंत्र और मस्तिष्कतंत्र इतना अधिक सुंदर – सुघड़ था कि उन्होंने इसी सौंदर्य के आधार पर भारत को लंबी दासता से मुक्त कराया तथा अनेक क्रांतिकारी विचारों से भारतीय संस्कृति को सुदृढ़ता प्रदान की । उनका जीवन अनेक प्रयोगों का संगम – स्थल था । उन्होंने अहिंसा के विचारों तथा सादगी और संयममय जीवन से अनेक लोगों को प्रभावित किया । ऐसा सौंदर्य बनाने से नहीं बनता , वह स्वाभाविक होता है । वह तेजोमय परमाणुओं से निर्मित होता है । शायद गांधीजी के पास भी उन्हीं परमाणुओं का पुंज था ।
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी अनेको बार कहते थे- “जिसका मस्तिष्क सुंदर होता है , वह व्यक्ति आकार – प्रकार में आकर्षक न होने पर भी सुंदर होता है । सौंदर्य का संबंध रूप लावण्य से उतना नहीं , जितना आंतरिक चेतना के सौंदर्य से है । जिसने आंतरिक सौंदर्य को विकसित करने का प्रयत्न किया , उसने सारे विश्व को सुंदरता का बोधपाठ दिया और वह महापुरुष इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णांकित हो गया ।” 

सुंदर बनने में क्रूरता को बढ़ावा तो नही दे रहे ?

एक व्यक्ति रंग – रूप से सुंदर होता है , देखने में भी खूबसूरत लगता है , पर यदि उसका मस्तिष्क और भावतंत्र भद्दा हो तो वह दूसरों के लिए अहितकर और ध्वंसकारी सिद्ध हो जाता है । जब द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ तब परमाणु बम गिराकर हजारों हजारों व्यक्तियों को स्वाहा किया , क्या उस प्रकार का व्यक्ति आंतरिक सौंदर्य का धनी हो सकता है ? क्या इतिहास उसे कभी माफ कर सकता है ? इस प्रकार के आचरण से क्या कोई दुनिया का सर्वोच्च व्यक्ति बन सकता है ? कभी नहीं । भले ही व्यक्ति नानाविध सौंदर्य प्रसाधनों से अपने आप को सुंदर बनाने का जी – भरकर प्रयत्न करे , पर वह सौंदर्य कब तक टिकने वाला है ? वह सौंदर्य संध्याभ्र के रंगों की भांति क्षणिक होता है । उस सौंदर्य सामग्री के साथ मूक प्राणियों की कराह भी जुड़ी हुई है । उनका करुण – क्रंदन क्या प्रयोक्ता के मानस को अपने आर्तस्वर से आंदोलित नहीं करेगा ? उन साधनों का प्रयोग क्या मनुष्य को सुंदर बना सकेगा ? भले ही मनुष्य उन निरीह प्राणियों की चीख को न सुने , पर उनकी पीड़ा व्यक्ति को कभी आनंदित नहीं कर सकती । Beauty Tips
सुंदर बनने के संसाधन Beauty Tips
मनुष्य अपनी सुख – सुविधा , स्वार्थ तथा अपने आप को सुंदर दिखाने के लिए कितने – कितने व किस प्रकार से मूक प्राणियों का वध करता है ? क्या यह व्यक्ति की विडंबना नहीं ? कैसी है मनुष्य की यह नृशंसता ? क्या यह पर्यावरण को दूषित बनाने का साधन नहीं है ? क्या यह पर्यावरण का असंतुलन नहीं है ?
एक ओर पर्यावरण शुद्धि के लिए अनेक प्रकार के उपाय, तो दूसरी ओर मूक प्राणियों के खून तथा करुण कराह से निष्पन्न सामग्री से अपने – आप को सुंदर बनाने का प्रयत्न ? यह प्रकृति से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है ? क्या यह खिलवाड़ इस कुरूप दुनिया को सुंदरता से भर देगा ?

Beauty Tips में सहायक अध्यात्म की खोज

जिस प्रकार मनुष्य ने कृत्रिम साधनों से अपने – आप को सुंदर बनाने के उपाय खोजे , क्या उसी प्रकार भीतरी सौंदर्य को प्रकट करने के साधन नहीं खोजे जा सकते ? अध्यात्म के आचार्यों ने अपने भीतर उतरकर कहा कि हमारे भीतर ऐसी तैजस ऊर्जा है जिसके द्वारा हम शारीरिक , मानसिक और भावनात्मक सुंदरता का निर्माण कर सकते हैं । यदि वह तैजस शक्ति जाग जाए तो मनुष्य अपने बाह्य और आंतरिक — दोनों प्रकार के सौंदर्य को उजागर कर सकता है । जिसके शरीर में तैजस शक्ति का विकास हो जाता है , उसका आभामंडल तेजोमय बन जाता है , वह शक्तिमत्ता और सुंदरता को प्राप्त कर लेता है । उस तैजस शक्ति के विकास के कुछेक उपाय [ Beauty Tips ] ये हैं –

तपःसाधना : Beauty Tips

 तप के द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बना सकता है । तप में अलौकिक शक्ति है । वह केवल । दूसरों को ही प्रभावित नहीं करती , स्वयं को भी शक्ति – संपन्न बनाती है । मनुष्य की स्वाभाविक प्रकृति है कि वह 5 खाने के लिए नहीं खाता – जीभ के स्वाद के लिए खाता है । । इसलिए स्वाद के लिए जो खाया जाता है , वह बहुधा अधिक मात्रा में और अनावश्यक होता है । जीवन को चलाने के लिए भोजन करना जितना आवश्यक है , उससे अधिक आवश्यक है भोजन का संयम । जीवन की तेजस्विता के लिए अल्प मात्रा में भोजन करना , उपवास से लेकर यथाशक्ति तपस्या । करना अनिवार्य है ।
वैज्ञानिक दृष्टि से चिंतन करें तो ज्ञात होगा कि जो शक्ति भोजन पचाने में खर्च होती है , वह शक्ति भोजन का लंघन करने से काफी हद तक बच जाती है । उस ऊर्जा का उपयोग मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए किया जा सकता है । जब मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है , तब सहज ही आंतरिक सौंदर्य प्रस्फुटित होने लगता है । जब आंतरिक सौंदर्य प्रकट होता है , तब जीवन भी तेजोमय तथा शक्तिमय बन जाता है ।

 मंत्र का लयबद्ध उच्चारण : Beauty Tips

आज के युग में ध्वनि – तरंगों का काफी महत्त्व है । वे ध्वनि – तरंगें प्रकंपन के रूप में व्यक्ति को प्रभावित करती हैं । उन ध्वनि – तरंगों में सूक्ष्म और अद्भुत शक्ति होती है । व्यक्ति अपने मुख से जो भी उच्चारण करता है , प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य प्रभाव होता है । मंत्रों का विकास ध्वनि तरंगों के आधार पर हुआ । मंत्र – विज्ञान उच्चारण पर पर्याप्त बल देता है । मंत्र – सिद्धि के लिए लयबद्ध उच्चारण का होना अत्यंत अनिवार्य है । आज का विज्ञान दो प्रकार की विद्युत स्वीकार करता है — पोजीटिव ( धन ) विद्युत , नेगेटिव ( ऋण ) विद्युत । व्यक्ति के मस्तिष्क में पोजीटिव विद्युत है और जीभ में नेगेटिव ।
जब भी मनुष्य किसी मंत्र का लय बन्द्र जाप करता है तब जीभ का तालु से स्पर्श होने पर पोजीटिव और नेगेटिव दोनों विद्युतों का आपस में संमिलन होता है । दोनों के संमिलन से प्रकाश तरंगों का प्रादुर्भाव होता है । जब – जब उच्चारण में लयबद्धता आती है , तब – तब दोनों प्रकार की विद्युत मिलकर अधिक प्रकाश तरंगों को उत्पन्न करती हैं । उनसे अनायास ही मनुष्य की तैजस शक्ति बढ़ जाती है । तैजस शक्ति का विकास ही वास्तव में आंतरिक सौंदर्य को प्रकट करता है और वही व्यक्ति को शक्ति – संपन्न तथा आनंद – संपन्न बनाता है।

रंगों का ध्यान : Beauty Tips

ध्यान जीवन को रूपांतरित करने का सशक्त आलंबन तथा अपने आंतरिक सौंदर्य को प्रकट करने का माध्यम है । ध्यान करने के अनेक प्रकार हैं । उनमें लेश्या ध्यान अति महत्त्वपूर्ण और जीवन बदलने का शक्तिशाली साधन है । लेश्या ध्यान का तात्पर्य ही है – रंगों का ध्यान । रंग हमारी भावधारा व विचारधारा को बदल सकते हैं । हमारी भीतरी दुनिया इतनी अधिक रंगबिरंगी है , इसका अनुभव लेश्या ध्यान से हो सकता है । मनुष्य रंगों की होली खेलता है । यदि वह अपने आंतरिक जगत में रंगों से खेलना सीख जाए तो उसका व्यवहार – स्वभाव बदल सकता है , आचार – व्यवहार में परिवर्तन हो सकता है और आवेग संवेग पर नियंत्रण पाया जा सकता है ।
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रंगों का स्वभाव

उदाहरण के तौर पर नीला रंग अध्यात्म का प्रतीक है । अध्यात्म के विकास के लिए तथा हिंसात्मक वृत्तियों को बदलने के लिए यह रंग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है । इसी तरह पीला रंग मन की प्रसन्नता का प्रतीक है । पीले रंग का ध्यान मस्तिष्क व नाड़ी संस्थान को शक्तिशाली बनाता है । बुद्धि – विकास के लिए इस रंग का ध्यान किया जाता है । पुरानी आदतों को बदलने व नई आदतों का निर्माण करने के लिए पीला रंग काफी सहायक होता है । अलबत्ता इसका प्रयोग अल्प समय तक ही करना चाहिए।
लाल रंग ऊष्मा का वाहक है । यह शरीर में प्रतिरोधात्मक शक्ति , सक्रियता , तेजस्विता व दीप्ति को उत्पन्न करता है । रक्त में लाल कणों की कमी के लिए लाल रंग उत्तरदाई होता है । यह स्वास्थ्य का मूल है । यदि शरीर में श्वेत कणों की मात्रा अधिक हो जाती है तो उससे मनुष्य अस्वस्थ हो जाता है । इसलिए लाल रंग का ध्यान शारीरिक और मानसिक विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है ।
इसी प्रकार श्वेत रंग जीवन की पवित्रता का द्योतक है । उपशम की साधना व कषायों के विलय के लिए सफेद रंग का ध्यान व्यक्ति को राग से वीतराग की ओर तथा आत्मा से परमात्मा की ओर उन्मुख करता है । इसलिए आंतरिक सौंदर्य को निखारने के लिए रंग को गौण नहीं किया जा सकता ।

वैज्ञानिक आधार

रंग विज्ञान के अनुसार प्रकाश तरंग के रूप में अभिव्यक्त होता है । प्रकाश का रंग उसके तरंग – दैर्ध्य पर अवलंबित है । तरंग की लंबाई और कंपन की आवृत्ति आपस में तुलना की दृष्टि से सर्वथा विपरीत हैं । जब तरंग की लंबाई बढ़ती है तब कंपन की आवृत्ति कम होती है । जब तरंग की लंबाई घटती है तब कंपन की आवृत्ति बढ़ती है । सूर्य का प्रकाश जब त्रिपार्श्व कांच में प्रत्यावर्तित होता है तब वह उसमें विक्षेपण के कारण सात रंगों में विभक्त होता हुआ दिखाई देता है । उस सप्तरंगी आकृति को स्पैक्ट्रम ( वर्ण पट ) कहते हैं । उन रंगों में लाल रंग की तरंग की | लंबाई सबसे अधिक और बैंगनी रंग का तरंग – दैर्घ्य सबसे । कम होता है । दूसरी ओर लाल रंग के प्रकाश की कंपन – आवृत्ति सबसे कम और बैंगनी रंग प्रकाश की कंपन आवृत्ति सबसे अधिक होती है । दृश्य – जगत में सूर्य से प्रसारित होने वाली प्रकाश – तरंग जब किसी पदार्थ से गुजरती है तब वह किसी रंग – विशेष के रूप में प्रकट होती है । इसका कारण है कि वह पदार्थ अपनी विशिष्टता के कारण किसी विशेष तरंग – दैर्घ्य को छोड़कर शेष सभी तरंगों को शोषित कर लेता है । जैसे दूब हरे रंग के तरंग – दैर्घ्य को छोड़कर शेष सभी तरंग – दैर्घ्य को शोषित कर लेती है । इसलिए आंखों को दूब हरी दिखाई देती है ।
इससे निष्कर्ष निकलता है कि पदार्थ का रंग तीन बातों पर अवलंबित है — पड़ने वाले प्रकाश की प्रकृति , पदार्थ द्वारा तरंग – दैर्घ्य का शोषीकरण तथा विभिन्न रंगों की प्रकाश किरणें । इन तीनों कारणों से ही आंखों द्वारा दृश्य पदार्थों का रंग प्रतीत होता है । Beauty Tips

आतापना : Beauty Tips

आंतरिक सौंदर्य को निखारने का एक अनुपम उपाय है — आतापना । इस सौर – मंडल में सूर्य सबसे अधिक तैजस शक्ति – संपन्न है । हमारे शरीर की भीतरी शक्तियों को जगाने के लिए तेजोमय परमाणुओं की आवश्यकता होती है । सूर्य ऊर्जा का केंद्रबिंदु है । पाचनतंत्र को स्वस्थ रखने के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है । उसके अभाव में हमारा पाचनतंत्र भी संकुचित हो जाता है । जिस प्रकार सूर्य के अस्त होने पर सूरजमुखी फूल संकुचित हो जाता है और सूर्योदय होने पर विकसित हो जाता है उसी प्रकार शरीर पर भी सूर्य के प्रकाश का प्रभाव पड़ता है । अधिकतर बीमारियों का अनुभव मनुष्य को दिन के ढलने पर ही होता है । इसलिए शरीर में ऊर्जा की आवश्यकता होती है । आतापना के द्वारा हम अतिरिक्त ऊर्जा का संचय कर सकते हैं । प्रातःकाल सूर्योदय के पश्चात् एक अथवा डेढ घंटे का समय धूपस्नान के लिए उचित माना जाता है । वस्त्रों को हटाकर सूर्य की किरणों के साथ शरीर का सीधा संपर्क साधना , सूर्य का आतप लेना आतापना की विशेष विधि है । यदि प्रतिदिन मनुष्य सूर्य की आतापना लेता है तो वह अपनी तैजस शक्ति को जागृत कर सकता है । वह ऊर्जा , शक्ति – संपन्न बन सकता है । इसलिए आतापना के द्वारा मनुष्य अपनी भीतरी शक्तियों को जगाकर आंतरिक सौंदर्य का स्वामी बन सकता है ।

 प्राणायाम : Beauty Tips

भीतरी सौंदर्य को प्रकट करने का एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम है -प्राणायाम । यह संजीवनी – शक्ति है । इसके द्वारा प्राण का संयम तथा अनुशासन होता है । सामान्यतः यह रेचक , पूरक और कुंभक की क्रिया है । प्राणायाम शारीरिक स्वास्थ्य का निर्माण करता है , स्नायुतंत्र का शोधन करता है और आंतरिक सौंदर्य को प्रकट करता है । प्राण का ग्रहण श्वास के द्वारा होता है । दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि श्वास का संबंध प्राण से है , प्राण का संबंध तैजस शरीर से तथा तैजस शरीर का संबंध कर्म शरीर से है । मनुष्य जब श्वास लेता है तो उसके साथ प्राणवायु ( आक्सीजन ) भीतर जाती है ।
प्रतिदिन प्राणायाम करने से शरीर में एक नई ऊर्जा और शक्ति का संचार होता है । प्राण – शक्ति के आधार पर योगनिष्ठ आचार्य विचित्र प्रकार के चमत्कार दिखाते हैं । क्योंकि प्राण का संबंध तैजस शक्ति से है । उससे मनुष्य की सुषुप्त क्षमताएं जागृत होती हैं । इस दृष्टि से प्राणायाम आंतरिक सौंदर्य को प्रकट करने का महत्त्वपूर्ण साधन बनता है । यदि व्यक्ति तैजस शक्ति संपन्न बनना चाहता है , तो उसे प्राणायाम का भी अभ्यास करना चाहिए ।
प्राणायाम के अनेक प्रकार हैं — संहिता , कुंभक , सूर्यभेदी , चंद्रभेदी , समवृत्ति , भस्त्रिका , उज्जाई , शीतली , भ्रामरी , मूर्छा आदि । सूर्यभेदी प्राणायाम , समवृत्ति प्राणायाम तथा भस्त्रिका प्राणायाम आदि तैजस शक्ति के विकास के लिए अति महत्त्वपूर्ण होते हैं ।
सारांश
इन तथ्यों के आधार पर यह फलित होता है कि सौंदर्य का संसार केवल त्वचा तक ही सिमटा हुआ नहीं है , वह वहां तक फैला हुआ है जहां व्यक्ति अपनी मर्जी से जाना नहीं चाहता । अज्ञात में जाकर छिपे सौंदर्य का अनुभव करना , बाहरी रूप – रंग से हटकर भीतर में असली सौंदर्य को देखना ही अपने – आप को सुंदर बनाने का सार्थक प्रयत्न हो सकता है । यदि इन उपायों से भीतर का सौंदर्य प्रकट हो जाए तो वह व्यक्ति दुनिया का सबसे सुंदरतम व्यक्ति होगा । काश ! ऐसा सौंदर्य सभी में प्रकट हो जाता तो दुनिया का नक्शा ही बदल जाता ।
आंतरिक सौंदर्य की फलश्रुति है — सुंदर व्यक्ति और सुंदर विश्व का निर्माण , भावों का विशुद्धीकरण , आचार व्यवहार का परिष्कार ।
जितेन्द्र कोठारी द्वारा लिखित यह आलेख लम्बे अनुभवों का निचोड़ है.  मिस्टर कोठारी Tathastu News Network के प्रधान संपादक है. Tathastu TV पर उनके आलेखों की लम्बी श्रृंखला प्रस्तुत की जा रही है.
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