Sonam Yadav का गीत : गगन के जाना जिनको पार
गाजियाबाद की सोनम यादव [ Sonam Yadav ] साहित्य की हर विधाओं में पारंगत है. गीत, नवगीत, गज़ल, मुक्तक, छंद, दोहे, हाइकु, अतुकान्त गीत, माहिया, घनाक्षरी, सवैया लघुकथा ,संस्मरण आदि सभी विधाओं में समान रूप से लेखन करती है. अंग्रेजी साहित्य में एम.ए करने वाली सोनम विभिन्न मंचों से काव्य पाठ कर चुकी है. अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनके द्वारा लिखे गए गीत,कविता,संस्मरण प्रकाशित हो चुके हैं.
कवित्री Sonam Yadav के गीत बहुत गहराई लिए हुए हैं. उनके गीतों को तथास्तु टी वी पर प्रस्तुत कर पाठको को कुछ नया टेस्ट देने जा रहे हैं. विश्वास है अन्य साहित्य साधको की तरह ही यह रचना भी आप सबको बहुत पसंद आएगी. सोनम जैसी प्रतिभाओं को आप अपने आस-पास भी देख रहे हैं तो उनको हमारी टीम से संपर्क करवाएं, जिससे उनके लेखन को यहाँ प्रस्तुत कर हम प्रतिभा के उत्साह को बढ़ा सके.

पढ़िए एक मुक्तक के साथ Sonam Yadav का गीत
मैं अधरों से तृष्णा चुराने चली हूँ
मै शवनम से सरिता बहाने चली हूँ
मेरे आँसुओं अब न आँचल से उलझो
तुम्हे अब मुखर स्वर बनाने चली हूँ।
गीत
सीमाओं में कहाँ बँधा है
प्रतिभाओं का तार
गगन के जाना जिनको पार
लिये हाथ में श्रम की लाठी
रच लेते ये नव परिपाटी
सपने आसमान के लेकिन
पाँव तले रहती है माटी
अपनी कूवत से कर लेते
सात समंदर पार
गगन के जाना जिनको पार
गगन के जाना जिनको पार
चाँद तोड़ अमृत निचोड़ ले
बरसाती जलधार मोड़ दे
टूटे हुए शिकारे कश्ती
जब चाहें ये उन्हें जोड़ दें
पाँव वक्त के सिर पर रखने
को हरदम तैयार
गगन के जाना जिनको पार
गगन के जाना जिनको पार
ये संघर्षों का प्रतिफल है
महा उदधि में मीठा जल है
नैराष्यों के वियाबान में
एक मात्र ये ही सम्बल हैं
ये प्रलयी अंधड के आगे
भरते हैं हुंकार
गगन के जाना जिनको पार
गगन के जाना जिनको पार।
सोनम यादव
गाजियाबाद महानगर