Wednesday, April 23, 2025
स्वास्थ्य

Health Tips स्वस्थ जीवन शैली के चार सूत्र – जितेन्द्र कोठारी

Health Tips by Jitendra Kothari 

जीवन की सफलता की कुंजी आरोग्य में निहित है । ऋषि – महर्षियों ने कहा है – ‘ पहला सुख निरोगी काया । ‘ दुनिया में सुख के अनेक साधन हो सकते हैं , किंतु पहला सुख शरीर का निरोग होना है । शरीर स्वस्थ है तो व्यक्ति धर्म – कर्म आदि सभी प्रवृत्तियों में भलीभांति प्रवृत्त हो सकता है । यदि स्वस्थ नहीं है , तो वह कोई भी कार्य प्रसन्नतापूर्वक संपन्न नहीं कर सकता और न ही वह चित्तसमाधि को प्राप्त कर सकता है । आरोग्य का संबंध बोधि और समाधि दोनों से है । इसलिए प्रत्येक मनुष्य की मंगलकामना सर्वप्रथम अपने स्वास्थ्य के प्रति ही होती है । व्याधि , आधि और उपाधि – ये तीन स्वास्थ्य के शत्रु उनसे बचना तथा उनका निराकरण करना ही शारीरिक , मानसिक और भावनात्मक स्वस्थता को प्राप्त करना है ।

भारतीय वाङ्मय में कहा गया- ‘ सर्वे भवंतु निरामयाः ‘ सभी प्राणी निरोग और स्वस्थ हों । अस्वास्थ्य मनुष्य को केवल रुग्ण ही नहीं करता , निराश भी करता है । कभी – कभी व्यक्ति अपनी बीमारी के कारण ‘ डिप्रेशन ‘ में चला जाता है और ‘ डिप्रेशन ‘ उसकी जीवन – लीला को समाप्त करने का एक निमित्त भी बन जाता है ।

जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है – सुख और शांति । उसके लिए आरोग्य , बोधि और समाधि – इस त्रिपदी की उपलब्धि होनी चाहिए । प्रसिद्ध जैनाचार्य महात्मा महाप्रज्ञ जी ने स्वस्थ जीवन-यापन के लिए स्वस्थ जीवन – शैली के चार सूत्रों का प्रतिपादन किया है । या यह कहे कि Health Tips प्रदान किये हैं.

सम्यक् श्वास : Health Tips

श्वास लेना और श्वास छोड़ना एक शारीरिक क्रिया है । उसके बिना जीवन का रथ नहीं चल सकता । श्वास की अनिवार्यता और महत्ता को जानते हुए भी व्यक्ति अपने श्वास के प्रति बे – भान और लापरवाह है । संत कबीर ने इस लापरवाही का बहुत ही सटीक शब्दों में चित्रण किया है –
रहिमन पास गरीब के , को आवत को जात ।
 एक बेचारो श्वास है , आत जात दिन रात ।। 
श्वास लेना एक बात है , किंतु सम्यक् श्वास लेना अलग बात है । सम्यक् श्वास लेने का अर्थ है — श्वास का दीर्धीकरण । जब श्वास लंबा लिया जाता है तो पेट फूलता है । जब श्वास छोड़ा जाता है तब पेट सिकुड़ता है । यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि मनुष्य का श्वास जितना लंबा होगा उतना ही प्राणवायु का ग्रहण अधिक होगा । उससे कार्बन डाई – ऑक्साइड का निस्सरण , फेफड़ों की सफाई और आमाशय की सफाई होती है । श्वास जितना छोटा होगा प्राणवायु उतनी ही शरीर में कम प्रविष्ट होगी । शरीर को जो लाभ मिलना चाहिए , वह लाभ नहीं मिल सकेगा । मनुष्य जिस श्वास से चिर – परिचित है , जिसके साथ वह दिन – रात जीता है — उसकी उपेक्षा करना न्यायसंगत नहीं है । फिर भी मनुष्य वही करता है , यह उसके अज्ञान का सूचक है ।
दीर्घ श्वास
दीर्घश्वास का दूसरा वैज्ञानिक पहलू है — अपने आवेगों – संवेगों का नियंत्रण । आवेग और संवेग का संबंध श्वास के साथ जुड़ा हुआ है । श्वास जितना छोटा होगा , उतनी ही आवेग – संवेग की प्रबलता होगी । श्वास जितना लंबा होगा , उतना ही अधिक कषायों का अल्पीकरण होगा । किसी व्यक्ति को अधिक गुस्सा आता है तो इसका तात्पर्य यह हुआ कि उसका श्वास छोटा है । छोटा श्वास होने का अर्थ है श्वास की संख्या का अधिक होना । यदि व्यक्ति प्रयत्नपूर्वक श्वास के दीर्धीकरण का अभ्यास साध लेता है तो गुस्सा भी स्वतः शांत हो जाता है । ध्यान की एकाग्रता तथा कषाय – उपशमन के लिए श्वास का लंबा होना , मंद होना तथा उसकी संख्या में कमी होना अत्यावश्यक है ।
एक छोटा बालक जितना अच्छा श्वास ले सकता है , शायद उतना अच्छा श्वास तरुण अथवा बुजुर्ग व्यक्ति नहीं ले सकता । इसलिए बच्चे का जीवन निश्चित तथा तनावमुक्त होता है । वह सुख की नींद लेने वाला होता है । श्वास का शरीर के रसायनों और नाड़ीतंत्र के साथ भी f गहरा संबंध है । श्वास जितना सम्यक् होगा , उतना ही उसका नाड़ीतंत्र स्वस्थ होगा , रसायनों का स्राव सम्यक् होगा । निष्कर्ष की भाषा में यही कहा जा सकता है कि यदि प्रत्येक व्यक्ति सम्यक् श्वास लेने का अभ्यास करे तो वह नि काफी हद तक शारीरिक , मानसिक और भावनात्मक दु समस्याओं से मुक्त हो सकता है , अपनी जीवन – शैली को स्वस्थ रख सकता है । Health Tips स्वस्थ जीवन जीने का पहला पाठ है — सम्यक् श्वास । वह मन की चंचलता को मिटाने का सशक्त माध्यम है ।

सम्यक् आहार और स्वस्थ : Health Tips

Health Tips

आहार जीवन की नितांत अपेक्षा है । उसके बिना अधिक समय तक जीवन नहीं चल सकता । आहार करने के मुख्यतया दो उद्देश्य हैं — प्रथम उद्देश्य है जीवन की यात्रा को सम्यक् रूप से चलाना । दूसरा उद्देश्य है शरीर को स्वस्थ रखना । आहार किसके लिए — जीभ के लिए अथवा स्वास्थ्य के लिए यह एक प्रश्न है । जीभ के लिए किया जाने वाला भोजन केवल जीभ को ही तृप्त कर सकता है , स्वास्थ्य नहीं दे सकता । केवल जीभ को तृप्त करने वाले लोग स्वादिष्ट , सुस्वादु , नमकीन , चटपटे तथा मिर्च मसालेदार भोजन को ही ज्यादा पसंद करते हैं । उनकी दृष्टि में सुपाच्य तथा पथ्यकारक भोजन का महत्त्व नहीं होता । जीभ के लिए पथ्यापथ्य का विवेक गौण हो जाता है । आयुर्वेद के किसी आचार्य से पूछा गया कि स्वस्थ कौन ? उत्तर मिला – हितकर , मितकर और ऋत्कर भोजन लेने वाला स्वस्थ होता है ।

हितकर और मितकर भोजन

आज के युग में हितकर भोजन मिलना दुर्लभ है और वैसे भोजन को ग्रहण करने वाले भी दुर्लभ हैं । दोनों ओर दुर्लभता ही दुर्लभता है । उनमें सुलभता को खोजना भी एक समस्या है । परिमित भोजन स्वस्थता का लक्षण हो सकता है । पर आज की संस्कृति में वह भी मजाक का विषय बन रहा है । खाएं भी और वह भी परिमित मात्रा में खाएं — यह कैसे हो सकता है ? स्वादिष्ट भोजन देखते ही मुंह से लार टपकने लगती है । न चाहते हुए भी अधिक खा लिया जाता है । वहां परिमित खाने की बात गौण हो जाती है और स्वादु भोजन की बात प्रधान बन जाती है । इसी के आधार पर लोक – मानस में एक धारणा भी बन गई — ‘ जीवन तो फिर भी मिल सकता है , पर स्वादिष्ट भोजन बार – बार नहीं मिलता । बिना खाए भी मरे और खाकर भी मरे तो क्या फर्क पड़ने वाला है । ‘
पशुओं की तरह भोजन करने वाले व्यक्ति बहुत कम मिलेंगे । पशु कभी भी स्वादिष्ट भोजन देखकर नहीं खाता । वह तो मात्र भूख मिटाने के लिए अथवा पेट भरने के लिए खाता है । मनुष्य की क्रिया सर्वथा पशु से विपरीत होती है । वह संयम – साधना के लिए नहीं खाता , स्वाद और पेटूपन के लिए खाता है । इसलिए वह बीमार भी अधिक होता है । इस दुनिया में डाक्टर के हाथों मरने वाले लोग बहुत कम हैं । ज्यादातर अपथ्यकारक तथा मात्रा से अधिक खाकर मरने वाले लोग हैं ।
सात्त्विक, तामसिक और राजसिक
भोजन की परिमितता के साथ – साथ भोजन का सात्त्विक होना भी अनिवार्य है । तामसिक – राजसिक भोजन मन को विकृत करता है , इंद्रियों को उद्वेलित करता है ।इसलिए कहा गया — ‘ जैसा खाए अन्न , वैसा होए मन । ‘ इंद्रियों और मन की स्वस्थता के लिए तामसिक भोजन का परिहार करना अत्यंत आवश्यक है । भोजन कैसे करें- इसके समाधान में कहा गया — जब चित्त शांत प्रसन्न हो , इंद्रियां अनुद्विग्न हो , मन में क्रोध , ईर्ष्या , मत्सर आदि का भाव न हो , कहीं भी उतावलापन न हो — उस स्थिति में भोजन लेना , उसे चबा – चबा कर खाना तथा भूख से कम खाना ही स्वास्थ्यप्रद होता है । जिन व्यक्तियों को मस्तिष्क से काम लेना है , कोई बड़ा कार्य करना है तो उन्हें विशेष रूप से भोजन के प्रति अत्यधिक जागरूक रहना होगा ।
भोजन कब किया जाए , यह सबके लिए समयबद्ध नहीं हो सकता । सबके लिए भोजन करने का अलग – अलग समय होता है । फिर भी जब अच्छी भूख लगे , पाचन तंत्र ठीक काम करता हो तब ही भोजन ग्रहण करना उत्तम होता है । इसी आधार पर एक कहावत प्रचलित हो गई — ‘ भूख बड़ी कि लापसी ‘ , भूख लगने पर सूखी रोटी भी स्वादिष्ट लगती है , अन्यथा लापसी भी रुचिकर नहीं लगती । बिना के कुछ खाना स्वास्थ्य को बिगाड़ने के सिवाय और अधिक कुछ नहीं है ।

ऋत्कर भोजन : Health Tips

स्वास्थ्य के साथ तीसरी बात जुड़ी है — ऋत्कर भोजन । न्यायपूर्वक उपार्जित अर्थ से स्वयं का पोषण करना बड़ा कठिन कार्य है । अनैतिक तरीके से अर्जित धन से बना हुआ भोजन स्वास्थ्य को बिगाड़ता है या नहीं , किंतु मन को अवश्य बिगाड़ देता है । जो कमाई खून और पसीने की कमाई होती है , उसका प्रभाव मन को विकृत बनाने वाला नहीं होता , जबकि शोषण और क्रूरता से अर्जित धन मन को विचलित करने वाला होता है । इसलिए स्वास्थ्य के लिए सम्यक् आहार की आवश्यकता है और जो भोजन हितकर , मितकर और ऋत्कर होता है — वही भोजन सम्यक् होता है । स्वस्थ जीवनयापन के लिए भोजन में तीनों ही प्रकार आवश्यक हैं ।

सम्यक् विचार

स्वस्थ जीवन शैली के चार सूत्र Health Tips

 मनुष्य कल्पना की पांखों से उड़ता है और विचारों के पैरों से चलता है । विचार का तात्पर्य है — गतिशीलता । जो गतिशील होता है , वह सब विचार नहीं होता , किंतु विचार अवश्य गतिशील होता है । विचार में बहुत बड़ी शक्ति होती है । विचारों के द्वारा ही व्यक्ति अपना व्यक्तिगत चिंतन वाणी के माध्यम से प्रकट करता है और साहित्य के माध्यम से अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाता है । विचारों का जितना मूल्य है , उससे अधिक मूल्य है निर्विचारता का । भले व्यक्ति निर्विचार की स्थिति तक न भी पहुंच पाए , किंतु वह सम्यक् विचारों में रहने का प्रयत्न करे तो जीवन में वह बहुत बड़ी उपलब्धि पा सकता है । विचार अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी । सकारात्मक भी हो सकते हैं और नकारात्मक भी । यदि मनुष्य बुरे विचारों को अच्छे विचारों में बदलना सीख जाए , नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों में रूपांतरित करना सीख जाए , तो समस्याओं को काफी हद तक समाहित कर सकता है । विचारों का संबंध मन से है । मन प्रतिपल विचारों को उत्पन्न करता रहता है । यदि व्यक्ति मन को प्रशिक्षित कर ले , उसे ध्यान के द्वारा अमन बना दे , तो बुरे विचार मनुष्य को नहीं सताएंगे । मनुष्य प्रतिदिन ज्ञाता – द्रष्टा भाव से विचारों को देखना सीख जाए — वह अच्छे विचारों को भी देखे और बुरे विचारों को भी । फिर वह उन विचारों में काट – छांट करे कि कौन – से विचार उसके लिए आवश्यक हैं और कौन – से विचार अनावश्यक । व्यक्ति की यह विवेक – बुद्धि ही हेय विचारों को छोड़ने वाली और उपादेय विचारों को अपनाने वाली सिद्ध होगी । यह है सम्यक् विचार और यही है सकारात्मक विचारों का विकास ।

सम्यक् भाव : Health Tips

जीवन विज्ञान का महत्त्वपूर्ण सूत्र है — जैसा भाव वैसा स्राव , जैसा स्राव वैसा स्वभाव , जैसा स्वभाव वैसा व्यवहार । व्यवहार मनुष्य के अंतर्भावों का प्रतिबिंब है । व्यवहार के आधार पर ही मनुष्य के अच्छे – बुरे भावों को जाना जा सकता है । व्यवहार एक प्रकार से गंगोत्री का जल है और भाव उसका मूल स्रोत है । गंगोत्री का जल तब तक शुद्ध नहीं हो सकता , जब तक उसका मूल स्रोत शुद्ध नहीं होता । भावों का संबंध भावतंत्र से है । भावशुद्धि के लिए मनुष्य को भावतंत्र तक पहुंचना होगा । व्यक्ति को केवल अपना मुखौटा बदलने की आवश्यकता नहीं है , आवश्यकता है — भीतर के रसायनों को बदलने की । जैसे रसायन होते हैं , वैसे ही भाव बनते हैं और जैसे भाव होते हैं , वैसे ही रसायन होते हैं — निरंतर एक चक्र चलता रहता है ।
मन की शक्ति
मनुष्य चाहता है कि मेरे भाव सदा शुद्ध बने रहें , सम्यक् बने रहें , मन में कोई अशुद्ध भाव ही न आए । अशुद्ध भावों के परिवर्तन के लिए मनुष्य वह सब – कुछ कर सकता है । उसके लिए आवश्यकता है शक्तिसंपन्नता की । मनुष्य के पास शरीर की शक्ति , मन की शक्ति और भावना की शक्ति है । भावपरिवर्तन के लिए मन की शक्ति का होना अधिक अपेक्षित है । मन की शक्ति के बाधक तत्त्व हैं भय , क्रोध , शोक , चिंता आदि । जब व्यक्ति इन प्रवृत्तियों से ग्रस्त होता है तब उसका मनोबल भी टूटता है । यदि वृत्तियों का परिष्कार हो जाए तो स्वतः ही मनोबल बढ़ेगा और मनोबल शुद्ध भावों को अवकाश देगा । यदि व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों और सुख – सुविधाओं में अपने – आप को साध ले , तो वह अशद्ध भावों को रोकने में सक्षम हो सकता है ।
सहिष्णुता की शक्ति शुद्ध भावों का निर्माण करती है । निरंतर अभ्यास और ध्यान – साधना के द्वारा सम्यक् भावों को पुष्ट किया जा सकता है । यदि भाव सम्यक् हो जाते हैं तो हमारा स्वभाव और व्यवहार भी संतुलित हो जाएगा ।
सारांश
उपरोक्त Health Tips के आधार पर व्यक्ति अपने – आप में स्वस्थ बन सकता है , वह जीने की कला सीख सकता है । सफलता को हस्तगत करने के लिए जीवन में सम्यक् श्वास , सम्यक् आहार , सम्यक् विचार और सम्यक् भाव – इन चारों की समन्विति का होना बहुत आवश्यक है । यदि ऐसा होता है तो एक नए व्यक्ति और एक नए समाज का अभ्युदय हो सकता है । जीवन समुन्नत और शक्तिमय बन सकता है , फिर समस्याएं हमारी परिक्रमा अवश्य करें , पर सताएंगी नहीं । तब हम उस लोक में विहरण करेंगे , जहां हमें शारीरिक , मानसिक , आध्यात्मिक और भावनात्मक स्वास्थ्य प्राप्त होगा । जिसका अन्यत्र प्राप्त होना दुर्लभ होता है । यही जीने की कला और यही है स्वास्थ्य को पाने की कला ।
स्वस्थ जीवन शैली के चार सूत्र - जितेन्द्र कोठारी
Health Tips by Jitendra Kothari
जितेन्द्र कोठारी जी का यह आलेख आप सबके लिए गहन चिंतन का अवसर प्रदान करता है. विदेशी संस्कृति की और आकर्षित होने वालों को हिन्दुस्तान की संस्कृति को गहराई से समझने का मानस बनाता है.
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