कुमारी लता प्रसार की भावपूर्ण कविताएँ
कविताएँ हमारे मन को आंदोलित करती है. इस बार हम आपके लिए कुछ अलग तरह की कविताएँ लेकर आयें हैं. इन कविताओं की रचनाकार कुमारी लता प्रसार जानी मानी कवित्री है. पटना, बिहार की रहने वाली कुमारी लता प्रसार की पुस्तक “कैसा यह वनवास” के लिए राज्य सरकार से अनुदान भी प्राप्त हुआ था. अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित कवित्री की कुछ कविताएँ तथास्तु टी वी के पाठको के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. मौसमी कविताएँ आप लोगों को रुचिकर लगेगी यह हमारा विश्वास है.
पढ़िए कुमारी लता प्रसार की भावपूर्ण कविताएँ
पत्थर हो जाना चाहती हूं
पत्थर हो जाना चाहती हूं
खारे पानी की कोई बूंद
कभी न गिरे धरती पर
शब्द शब्द में ढूंढती हूं
थोड़ा प्यार थोड़ा मनुहार
बस थोड़ा सा करार
फिर भी बेचैनी रहती है
इसलिए
पत्थर हो जाना चाहती हूं
बार बार जब आपसे
कोई कहे आप प्यार नहीं करते
जबकि आप बेइंतहा
प्यार करते हैं
ऐसे में आप क्या कहेंगे
आपकी जगह मैं होती
तो जरुर कहती
बस पत्थर हो जाना चाहती हूं
मौसम की मनमानी
सह जाना आसान है
अपनों की मनमानी
बहुत मुश्किल होता है
इच्छा के विरुद्ध
सह जाना
कैसे सह सकती हूं
तो कहती हूं
पत्थर हो जाना चाहती हूं
कोई लिहाफ में सिमटा है
कोई गिलाफ से चिपटा है
नंगे बदन उछल कूद करता
नौनिहालों को देखकर
सिहर उठता है मन
कुछ कर भी नहीं पाती
और ये दर्द सह नहीं पाती हूं
तभी मुंह से
निकल आता है
पत्थर हो जाना चाहती हूं
हां पत्थर हो जाना चाहती हूं!
अगहनी शीतल रात्रि का आनन्द लीजिए
नमस्कार
कुछ उम्मीद
कुछ प्रयास
आने वाले कल को
शायद दे दे आस
बस हम तो यूं ही
लगा रहे हैं कयास
अखबार की
पहली झलक में
दिख जातीं हैं
नम आंखें
कसूर किसका है
इसे कौन आंकें
कल आज और कल
चल चल चले चल!
अगहनिया धूप का स्वागत
गुनगुना प्रणाम
सफ़र यूं बीत गया शब्द ढूंढते ढूंढते
मौसम मुझसे जीत गया हंसते हंसते
आते हैं जाते हैं कितने किस्से सुनाते हैं
दिन यूं ही बीत गया आहिस्ते आहिस्ते!