Wednesday, April 23, 2025
सेवा - संस्कार

Old is Gold वैज्ञानिक युग में बुजुर्गों का महत्त्व – प्रदीप कोठारी

हम सबने Old is Gold वाली कहावत सुनी थी. आज उसी कहावत को सच्च होते देख रहे हैं. Old is Gold को ध्यान में रख कर Pradeep Kothari ने बुजुर्गों की तरफ हम सबका ध्यान आकर्षित करने का सराहनीय प्रयास किया है.
वर्तमान युग को वैज्ञानिक युग कहा जाता है। वैज्ञानिक शोधों ने अनेकों सुविधाएं प्रदान की है। इन सुविधाओं ने आने वाली पीढ़ी को भौतिक चकाचौंध में धकेल दिया है। आज बच्चा चलना प्रारंभ बाद में करता है पर मोबाइल . टेबलेट और लेपटॉप आदि को प्राप्त करना पहले चाहता है। जब बचपन इन्हीं वस्तुओं में गुजरता है तो संस्कार प्रदान करने वाली कहानियां – किस्से छूट जाते हैं।
इस भौतिकता में वैज्ञानिक खोजों में जीने वाले बच्चों को देखता हूं तो लगता है प्राचीन समय में बच्चे कैसे अपना बचपन बिताते थे? क्या पुरानी पीढ़ी ने कभी बचपन जिया ही नहीं? क्योंकि उनके पास इस तरह के वैज्ञानिक उपकरण तो थे नहीं। फिर वो क्या करते थे? पहले का बचपन इन टी.वी., गोबाइल, कम्प्यूटर की जगह अपने दादा – दादी के साथ गुजरता था। वे उनके द्वारा कहानी – किस्से सुनकर न केवल अपने ज्ञान को बढ़ाते थे बल्कि सद् – संस्कार भी पाते थे। आज दादा – दादी की जगह इन वैज्ञानिक उपकरणों ने ले ली है और कहानी – किस्सों की जगह फिल्मों, सीरियलों एवं गेमों ने प्राप्त कर ली।

Old is Gold का ऐसे देखें महत्त्व 

Old is Gold

दादा – दादी के द्वारा जो बात सुनी जाती, जो कहानी श्रवण की जाती वह एक सीख देने वाली होती, जो जीवन भर साथ निभाती और विपरीत परिस्थितियों में मजबूती के साथ खड़ा रहने की हिम्मत देती। परन्तु आज के उपकरण न तो वह सीख देने में सक्षम है और न प्रतिकूलता में खुश रहने का जज्बा देते हैं। हां इनके कारण यह जरूर हो गया है कि बुजुर्ग उपेक्षित रहने लग गये हैं। बच्चे वैज्ञानिक उपकरणों में ही उलझकर रह जाते हैं। जब उनको दादा – दादी के पास बैठने के लिए कहा जाता है, उनसे बात करने के लिए कहा जाता है तब इसके उत्तर में समय न होने का जुमला वो सुना देते हैं।
मौके – बे – मौके अगर उनको बात करने का समय मिल भी जाये तो देखा जाता है कि उनके पास बुजुर्गों से बात करने का सलीका भी नहीं है। मैं यह तो नहीं कहता कि ये उपकरण अनुपयोगी है परन्तु यह जरूर कहना चाहूंगा कि बचपन में इनसे उलझना उचित नहीं है। बाल्यावस्था का समय ऐसा होता है, जिसमें जिस तरह के संस्कार डाल दिये जाते हैं, वैसा ही व्यक्तित्व निर्मित हो जाता है फिर जिन्दगी भर वह व्यक्तित्व उसकी सफलता व असफलता का मानदंड बनता जाता है।
 जो बालक बुजुर्गों के सान्निध्य से गुजरा होता है, वह अपने व्यक्तित्व को सहनशीलता, विनम्रता, आत्मविश्वास, समन्वयशीलता, श्रमशीलता व संवेदनशीलता से भावित कर लेता है। ऐसे व्यक्तित्व के कारण उसे हर क्षेत्र में सफलता ही प्राप्त होती है। इसलिया उनको Old is Gold कहा जाता है। इसके विपरीत जो बुजुर्गों के साये से वंचित रह जाता है वह अनुकूल – प्रतिकूल परिस्थितियों में संतुलन नहीं बना पाता और राह से भटक भी जाता है। उसे बड़ों का सम्मान करना भी नहीं आता है। ऐसी स्थिति में उसे असफलता ही हाथ लगती है।

बुजुर्गों के पास अनुभवों का खजाना

बुजुर्गों को नजर अंदाज कर जिस भी घर में बालकों द्वारा कम्प्यूटर आदि वैज्ञानिक उपकरणों में समय लगाया जाता है उस घर में प्रायः देखने को मिलता है कि बच्चे हिंसक गतिविधियों में सम्मिलित है, चोरी छिपे आपराधिक प्रवृत्तियों में भाग ले रहे हैं, या अप्राकृतिक क्रियाकलापों को अंजाम दे रहे हैं। इसका कारण है, इन उपकरणों में हिंसक गेम होते हैं, जो केवल दूसरों का अहित करना ही सिखाते हैं। ऐसी फिल्में देखने को मिलती है जो स्मोकिंग, गाली – गलोच या भौतिक चकाचौंध की ओर आकर्षित करती है। इन्टरनेट ज्ञान का खजाना कहा जाता है पर जिसे प्रारंभ से ही स्वयं पर नियंत्रण करना नहीं आता है वह इसका उपयोग करता है तो उसके लिए वह अज्ञानी बनाने वाला, अधोगति में ले जाने वाला बन जाता है।
 महान पुरुषों द्वारा कहा जाता है – ‘ बुजुर्गों के पास अनुभवों का खजाना होता है जो इस खजाने से प्रतिदिन एक वस्तु प्राप्त कर ले, एक बात सीख ले तो वह वर्तमान प्रतिस्पर्धावादी युग में भी सफलता पा सकता है, विजयी बन सकता है। अंग्रेजी के यह शब्द भी बहुत महत्त्वपूर्ण है –
‘ओल्ड इज गोल्ड’। जो पुराना है, वह सोना है। वास्तव में देखा जाये तो बुजुर्ग सोना ही होते हैं। वे अपनी जिन्दगी में खाई ठोकरों से जो तजुर्वा प्राप्त करते हैं उसे आने वाली पीढ़ी में बांट देते हैं जिससे उनके बच्चे, पोते अपने जीवन में खुश रह सके, शांति पा सके और समाज में सिर उठा कर चल सके।

प्रेरणा 

आज आवश्यकता इस बात की है कि आने वाली पीढ़ी सुविधावादी उपकरणों से ज्यादा बुजुर्गों को महत्व दें जिससे यह उपकरण आपके लिए और ज्यादा उपयोगी बन सके, सफलता दिलाने वाले साबित हो सके। अगर ऐसा होगा तो मुझे लगता है आने वाला समय स्वर्णिम, उज्ज्वल व निश्चिन्तता का होगा।
Old is Gold by प्रदीप कोठारी 
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